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रिम-झिम बरसात

रिम-झिम बरसात
 रिम-झिम हो बरसात,
नहीं पिया यदि साथ-कहो,क्या रह पाओगे?
सावन की हो रात,
नहीं पिया यदि साथ-कहो,क्या रह पाओगे?
    मेघ-गरजना से दिल दहले,
     बिजली आँख मिचौली खेले।
      लिए विरह-आघात-कहो, क्या रह पाओगे?
धरती ओढ़े धानी चुनरिया,
बलखाती-इठलाती गुजरिया।
वन-उपवन भरे पात-कहो, क्या रह पाओगे?
      सन-सन बहे पवन पुरुवाई,
       कारी बदरिया ले अँगड़ाई।
       सिहर उठे तन-गात-कहो, क्या रह पाओगे?
बस्ती-कुनबा, गाँव-गलिन में,
बाग़-बग़ीचा, खेत-नदिन में।
क़ुदरत की सौग़ात-कहो, क्या रह पाओगे?
     अनुपम प्रकृति-प्रेम-रस बरसे,
      निरखि-निरखि जेहि हिय-चित हर्षे।
      विह्वल मन न आघात-कहो, क्या रह पाओगे?
                                         ©डॉ. हरि नाथ मिश्र
                                             9919446372

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6 Comments

खूबसूरत भाव

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Rupesh Kumar

28-Dec-2023 08:53 PM

बहुत खूब

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Reyaan

28-Dec-2023 08:33 PM

V nice

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